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छत्तीसगढ़ पीड़ित क्षतिपूर्ति योजना- 2011 के संबंध में दी गई जानकारी :
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खैरागढ़ ! DNnews- अध्यक्ष विनय कुमार कश्यप जिला विधिक सेवा प्राधिकरण राजनांदगांव के निर्देशानुसार और अध्यक्ष चन्द्र कुमार कश्यप और सचिव देवाशीष ठाकुर के मार्गदर्शन में दिनांक 19.01.2023 को लालपुर में विशेष कानूनी जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया जहां उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए पैरालीगल वालंटियर गोलू दास द्वारा छत्तीसगढ़ पीड़ित क्षतिपूर्ति योजना- 2011 के बारे में कहा गया कि
"पीड़ित का आशय’’ ऐसे व्यक्ति से है जिसे किसी अपराध के कारण नुकसान या क्षति हुई हो तथा इसके अंतर्गत उसके आश्रित परिवारजन भी शामिल है।
स्वयं कोई नुकसान या क्षति सहा हो अथवा किसी अपराध के फलस्वरूप जिसे चोट आई हो एवं जिसे पुनर्वास की आवश्यकता हो, इसके अंतर्गत पीड़ित के आश्रित परिवारजन भी शामिल है।
क्षतिपूर्ति के लिए अर्हताएं:- निम्नलिखित अर्हताएं पूर्ण करने वाला पीड़ित व्यक्ति या उसका आश्रित इस योजना के अंतर्गत क्षतिपूर्ति के पात्र होंगे। पीड़ित को चोट अथवा क्षति के कारण उसके परिवार की आय में पर्याप्त कमी हो गयी हो, जिसके कारण आर्थिक सहायता के बिना परिवार का जीवन यापन कठिन हो गया हो अथवा मानसिक/शारीरिक चोट के उपचार में उसे उसके सामर्थ्य से ज्यादा व्यय करना पड़ता हो।
पीड़ित अथवा उसके परिजन द्वारा अपराध की रिपोर्ट संबंधित क्षेत्र के थाना प्रभारी/कार्यपालिक दण्डाधिकारी/न्यायिक दण्डाधिकारी को बिना अनुचित विलम्ब के किया गया हो।
पीड़ित/आश्रित व्यक्ति अपराध की विवेचना एवं अभियोजन कार्यवाही में क्रमशः पुलिस एवं अभियोजन पक्ष का सहयोग करता हो।
क्षतिपूर्ति की स्वीकृति की प्रक्रिया:- अधिनियम की धारा 357 के अंतर्गत जब किसी सक्षम न्यायालय के द्वारा क्षतिपूर्ति की अनुशंसा की जाती है अथवा धारा 357 ए की उपधारा 4 के अंतर्गत किसी पीड़ित व्यक्ति अथवा उसके आश्रित के द्वारा जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को आवेदन पत्र प्रस्तुत किया जाता है तब उक्त प्राधिकरण संबंधित पुलिस अधीक्षक से परामर्श तथा समुचित जांच पश्चात तथ्य एवं दावे की पुष्टि करेगा तथा 02 माह के अंदर जांच पूर्ण कर योजना के प्रावधानों के अनुरूप पर्याप्त क्षतिपूर्ति की घोषणा करेगा।
इस योजना के अंतर्गत क्षतिपूर्ति का भुगतान इस शर्त पर किया जायेगा कि यदि बाद में निर्णय पारित करते हुए विचारण न्यायालय आरोपित व्यक्तियों द्वारा अधिनियम की धारा 357 के उप नियम 3 के अंतर्गत क्षतिपूर्ति दिये जाने हेतु आदेशित करता है तो जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा पूर्व में घोषित क्षतिपूर्ति को उसमें समायोजित किया जावेगा। इस आशय का एक वचन पत्र पीड़ित/दावेदार द्वारा क्षतिपूर्ति के भुगतान के पूर्व दिया जायेगा।
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा पीड़ित या उसके आश्रित के लिए क्षतिपूर्ति की राशि निर्धारित करने में पीड़ित को हुए नुकसान, उपचार खर्च, पुनर्वास हेतु आवश्यक न्यूनतम निर्वाह राशि तत्समय लागू न्यूनतम मजदूरी एवं अन्य प्रासंगिक व्यय जैसे अंत्येष्ठि व्यय इत्यादि को ध्यान में रखा जायेगा। तथ्यों के आधार पर क्षतिपूर्ति की राशि में प्रकरण दर प्रकरण भिन्नता हो सकती है।
"पीड़ित का आशय’’ ऐसे व्यक्ति से है जिसे किसी अपराध के कारण नुकसान या क्षति हुई हो तथा इसके अंतर्गत उसके आश्रित परिवारजन भी शामिल है।
स्वयं कोई नुकसान या क्षति सहा हो अथवा किसी अपराध के फलस्वरूप जिसे चोट आई हो एवं जिसे पुनर्वास की आवश्यकता हो, इसके अंतर्गत पीड़ित के आश्रित परिवारजन भी शामिल है।
क्षतिपूर्ति के लिए अर्हताएं:- निम्नलिखित अर्हताएं पूर्ण करने वाला पीड़ित व्यक्ति या उसका आश्रित इस योजना के अंतर्गत क्षतिपूर्ति के पात्र होंगे। पीड़ित को चोट अथवा क्षति के कारण उसके परिवार की आय में पर्याप्त कमी हो गयी हो, जिसके कारण आर्थिक सहायता के बिना परिवार का जीवन यापन कठिन हो गया हो अथवा मानसिक/शारीरिक चोट के उपचार में उसे उसके सामर्थ्य से ज्यादा व्यय करना पड़ता हो।
पीड़ित अथवा उसके परिजन द्वारा अपराध की रिपोर्ट संबंधित क्षेत्र के थाना प्रभारी/कार्यपालिक दण्डाधिकारी/न्यायिक दण्डाधिकारी को बिना अनुचित विलम्ब के किया गया हो।
पीड़ित/आश्रित व्यक्ति अपराध की विवेचना एवं अभियोजन कार्यवाही में क्रमशः पुलिस एवं अभियोजन पक्ष का सहयोग करता हो।
क्षतिपूर्ति की स्वीकृति की प्रक्रिया:- अधिनियम की धारा 357 के अंतर्गत जब किसी सक्षम न्यायालय के द्वारा क्षतिपूर्ति की अनुशंसा की जाती है अथवा धारा 357 ए की उपधारा 4 के अंतर्गत किसी पीड़ित व्यक्ति अथवा उसके आश्रित के द्वारा जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को आवेदन पत्र प्रस्तुत किया जाता है तब उक्त प्राधिकरण संबंधित पुलिस अधीक्षक से परामर्श तथा समुचित जांच पश्चात तथ्य एवं दावे की पुष्टि करेगा तथा 02 माह के अंदर जांच पूर्ण कर योजना के प्रावधानों के अनुरूप पर्याप्त क्षतिपूर्ति की घोषणा करेगा।
इस योजना के अंतर्गत क्षतिपूर्ति का भुगतान इस शर्त पर किया जायेगा कि यदि बाद में निर्णय पारित करते हुए विचारण न्यायालय आरोपित व्यक्तियों द्वारा अधिनियम की धारा 357 के उप नियम 3 के अंतर्गत क्षतिपूर्ति दिये जाने हेतु आदेशित करता है तो जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा पूर्व में घोषित क्षतिपूर्ति को उसमें समायोजित किया जावेगा। इस आशय का एक वचन पत्र पीड़ित/दावेदार द्वारा क्षतिपूर्ति के भुगतान के पूर्व दिया जायेगा।
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा पीड़ित या उसके आश्रित के लिए क्षतिपूर्ति की राशि निर्धारित करने में पीड़ित को हुए नुकसान, उपचार खर्च, पुनर्वास हेतु आवश्यक न्यूनतम निर्वाह राशि तत्समय लागू न्यूनतम मजदूरी एवं अन्य प्रासंगिक व्यय जैसे अंत्येष्ठि व्यय इत्यादि को ध्यान में रखा जायेगा। तथ्यों के आधार पर क्षतिपूर्ति की राशि में प्रकरण दर प्रकरण भिन्नता हो सकती है।
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