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कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 के संबंधित दी गई जानकारी :

Dinesh Sahu
21-02-2023 10:42 PM
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खैरागढ़! DNnews-छत्तीसगढ़ राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण बिलासपुर के तत्वधान में ताल्लुक विधिक सेवा समिति खैरागढ़ द्वारा दिनांक 21.02.2023 को ग्राम मरकाम टोला में विधिक साक्षरता शिविर का आयोजन किया गया जहां उपस्थित महिलाओं पुरुषों व ग्रामीण जनों को कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के संबंध में पैरा लीगल वालंटियर गोलूदास साहू के द्वारा बताया गया कि सन् 2013 में कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न अधिनियम को पारित किया गया था।जिन संस्थाओं में दस से अधिक लोग काम करते हैं, उन पर यह अधिनियम लागू होता है l ये अधिनियम, 9 दिसम्बर, 2013, में प्रभाव में आया था। जैसा कि इसका नाम ही इसके उद्देश्य रोकथाम, निषेध और निवारण को स्पष्ट करता है और उल्लंघन के मामले में, पीड़ित को निवारण प्रदान करने के लिये भी ये कार्य करता है। यौन उत्पीड़न भेदभाव का एक गंभीर रूप है, और इसे बरदाश्त नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह काम में समानता का अवमूल्यन है, और काम करने वालों की इज्जत गरिमा और सलामती के खिलाफ है। सभी मजदूरों को, चाहे महिला हों या पुरुष, ऐसे कार्यस्थल पर काम करने का अधिकार हैं, जो सुरक्षित, आजाद, भेदभाव व हिंसा से मुक्त हो, और महिलाओं के लिए अपनी ज़िम्मेदारियां निभाने में सहायक हो, क्योंकि कार्य स्थल ऐसा स्थान है जहां वे अपने दिन का ज्यादातर समय बिताते हैं।
यौन उत्पीड़न के बाद उसके शिकार व्यक्ति पर बहुत गहरा नकारात्मक असर पड़ता है। उसे मानसिक पीड़ा, शारीरिक पीड़ा और व्यवसायिक घाटे झेलने पड़ते हैं। जो कर्मचारी यौन उत्पीड़न का शिकार होता है, उसकी क्षमता के विकास की संभावना बहुत कम हो जाती है।' इसका नकारात्मक असर सिर्फ एक व्यक्ति तक सीमित नहीं रहता बल्कि पूरे संस्थान में काम कर रहे बाकी कर्मचारी और समूचा कार्यस्थल इससे प्रभावित होते हैं। इसके कई नकारात्मक परिणाम होते हैं जैसे सामूहिक कार्य में बाधा, आर्थिक नुकसान, उत्पादन में क्षति और विकास की गति धीमी पड़ना। यह समाज में महिलाओं और पुरूषों के बीच समानता और बराबरी कायम करने के रास्ते में बाधा पहुंचाता है। चूंकि यह लैंगिक हिंसा और भेदभाव को सही नही ठहराता है, इसलिए इससे पूरे देश के विकास और लोगों की खुशहाली को हानी होती है। इसलिए, यौन उत्पीड़न को रोकना और इसका निवारण करना समाज के हित में है।
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