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शिक्षा

KCG - स्कूली बच्चे ठीक से नही लिख पा रहे इमला, बदहाल शिक्षा व्यवस्था मे क्या करे बिमला। : बालिकाओं को हो रही शौच से संकोच, इधर सेनेटरी पैड का उचित व्यवस्था नही

Dinesh Sahu

25-11-2022 03:37 PM
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पेयजल से लेकर पीने की पानी , हैंडवाश भी नही

खैरागढ ! DNnews- खैरागढ़ के शिक्षा व्यवस्था बदतर स्थिति से गुजर रही है. यहां विभाग के अधिकारी कर्मचारी मस्तमौला होकर समय काट रहे है. कभी सुपरविजन के नाम से दफ्तर से बाहर भी नही निकल रहे है. जिस ब्लाक व जिले की अधिकारी लापरवाह हो तो निचले स्तर के कर्मचारियों की बेहतर काम की कल्पना करना बेकार है.

स्कूलों मे स्वच्छता दूरदर्शी हो गया
स्कूल को शिक्षा का मंदिर कहा जाता है. और मंदिर मे ही स्वच्छता न हो तो आगे की बात आप सोच सकते है. स्वच्छत भारत मिशन के तहत या इससे पहले भी अधिकांश स्कूलों मे बालक बालिकाओं का शौचालय का निर्माण कराया गया है. निर्माण तो हो गया लेकिन अभी भी उपयोग के लायक नही है. यानि स्चच्छता का सबसे बड़ा हिस्सा शौचालय बदतर स्थिति से गुजर रही है. जिले के अधिकांश शौचालय आज भी उपयोग के लायक नही है. कई स्कूलों मे तो ऐसा भी होता है कि हर साल शौचालय का निर्माण होता है. जहां शासन को लाखो रूपये का गच्चा भी लगता है. लेकिन इतने बड़ी राशि खर्च करने के बाद भी शौचालय उपयोग करने के लायक न हो इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है.एक बात और है कि यहां बालिकाओं को परिसर मे शौचालय का उपयोग करने मे संकोच हो रही है. इसका सीधा कारण शौचालय का बदहाल व्यवस्था

दिव्यांग शौचालय बना कबाड़.
वैसे सरकार दिव्यांगों के समस्या को ध्यान मे रखते हुए हर स्कूलों मे अलग से दिव्यांग शौचालय का निर्माण कराया है. जहां मापदंड के हिसाब से रैंप व रैलिंग होना था. लेकिन आज भी देखा जाए तो दिव्यांग शौचालय मे रैंप व रैलिंग का अता पता नही है वही दिव्यांग शौचालय बिना उपयोग के कबाड़ की स्थिति मे है. जिसको देखने के लिए स्कूल के प्रधान पाठक से लेकर संकुल समन्वयक, विकास खंड शिक्षा अधिकारी व सहायक विकास खंड शिक्षा अधिकारियों के द्वारा केवल कागजो मे ही मानिटरिंग दिखाते है. जबकि हकीकत कुछ और ही है.

विभाग के जवाबदार अधिकारी नही करते सुपरविजन.
केसीजी मे शिक्षा विभाग अपनी कारगुजारियों के नाम से जाना जाता है. वही शिक्षा व्यवस्था भी पटरी से उतर गई है. शिक्षा व्यवस्था को सही दिशा दिखाने के लिए जवाबदार अधिकारी थोड़ा भी संवेदनशील नही है. यही वजह है कि केसीजी मे शिक्षा व्यवस्था बदहाल दिखाई पड़ रही है. एक बात और समझ नही आती कि आखिर विभाग के जवाबदार अधिकारी केवल दफ्तर तक सीमित है. और दफ्तर मे बैठकर मानिटरिंग होना असंभव है. यानि यह भी कह सकते है कि जवाबदार अपनी संबंधित स्कूलों के गड़बड़ियों को सुधारने के बजाए उच्च अधिकारियों को सही रिपोर्ट दे देते है. कागजों मे तो शिक्षा से लेकर स्वच्छता व अन्य गतिविधियां तो बराबर चल रही है. लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है.

मुख्यालय मे नही रहते शिक्षक

बता दें कि केसीजी के अधिकांश शिक्षक मुख्यालय मे नही रहते . इस वजह से भी बेहतर शिक्षण भी नही हो रही है.जो शिक्षक 60 किलोमीटर दूरी तय कर अपनी स्कूल पहुंच रहे है. उससे बेहतर शिक्षण की कल्पना करना मुश्किल है. अधिकांशतः शिक्षक लोकल गांवों का किराये नामा बनवाकर किराये का पैसा भी बराबर ले रहे है. लेकिन दुर्भाग्य यह है कि अधिकांश शिक्षक लंबी दूरी तय कर स्कूल पहुंच रहे है. सच्चाई जाना जाए तो अधिकांश शिक्षक की पोटली भी खुल जाएगी. समय पर स्कूल नही पहुंचना व समय से पहले स्कूल से चले जाना अधिकांश शिक्षकों के आदत पर शुमार है.

नालेज टेस्ट मे अधिकांश स्कूलों के बच्चे फैल
DNnews ने जिले के वनांचल से लेकर मैदानी इलाकों के स्कूलों मे जब मानिटरिंग के दौरान बच्चों का नालेज टेस्ट लिया तो अधिकांश बच्चे फैलवर साबित हुए. बच्चों को ठीक से इमला लिखना भी नही आ रहा है. आशीर्वाद, प्राकृतिक, नर्मदा, स्वेच्छा जैसे शब्दों को बच्चे लिख नही पा रहे है. अब इसे दुर्भाग्य कहे या कुछ और। शिक्षकों के द्वारा बच्चों को ठीक से पठन-पाठन मे ध्यान नही देना बच्चों को कमजोर करने की जुगत मे दिखाई पड़ता है. प्राथमिक स्कूल के बच्चों को ठीक से न अंग्रेजी का ज्ञान है और ना ही हिन्दी का

संकुल समन्वयको की लापरवाही
बेहतर शिक्षा व्यवस्था को लेकर DNnews ने मुहिम छेड़ी हुई है. जहां स्कूलों मे जाकर बच्चों व पालकों से चर्चा कर अभियान मे तेजी ला रही है. शिक्षा व्यवस्था को और बेहतर करने के लिए स्कूलों तक पहुंच रही है. यहां एक बात और समझ नही आती कि संकुल समन्वय आखिर अपने स्कूलों मे पढ़ाई छोड़ ब्लाक मुख्यालय मे क्यो रहते है. क्या यहां दो चार दिनो मे इनकी मिटिंग रहती है. या संकुल समन्वयको को ब्लाक मुख्यालय मे पहुंच रिपोर्टिंग करनी है. विकास खंड कार्यालय मे आज तक न तो इनकी बैठक का ठिकाना रहता है और ना ही बैठक सूचना चस्पा होता है.

पालको को नही है रूचि
हर स्कूलों मे एसएमसी (स्कूल मैनेजमेंट कमेटी) का गठन हुआ है. लेकिन यह कमेटी केवल 15 अगस्त व 26 जनवरी मनाने के लिए उपस्थित होते है. इन कमेटियों के पदाधिकारियों को भी बच्चों के भविष्य से कोई सरोकार नही है. वही विभाग आज तक शिक्षक-पालक बैठक व शिक्षक संपर्क से भी दूरी बना लिए है. ऐसे मे चर्चा परिचर्चा व स्कूल के गतिविधियों पर कोई विचार या कोई नवा पहल देखने को नही मिल रहा है.

Dinesh Sahu

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