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जीवन मंत्र
सेक्स और आदमी,साल भर में आदमी की कोई अवधि न रही कोई पीरियड न रहा


Dinesh Sahu
17-06-2024 09:45 PM
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आदमी सेक्स को दबाने के कारण ही बंध गया और जकड़ गया। और यही वजह है पशुओं की तो सेक्स की कोई अवधि होती है कोई पीरियड होता है वर्ष में आदमी की कोई अवधि न रही कोई पीरियड न रहा।
आदमी चौबीस घंटे बारह महीने सेक्सुअल है सारे जानवरों में कोई जानवर ऐसा नहीं है कि जो बारह महीने और चौबीस घंटे कामुकता से भरा हुआ हो। उसका वक्त है उसकी ऋतु है वह आती है और चली जाती है। और फिर उसका स्मरण भी खो जाता है।
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आदमी को क्या हो गया?
आदमी ने दबाया जिस चीज को वह फैल कर उसके चौबीस घंटे और बारह महीने के जीवन पर फैल गई है।
कभी आपने इस पर विचार किया कि कोई पशु हर स्थिति में हर समय कामुक नहीं होता। लेकिन आदमी हर स्थिति में हर समय कामुक है। जैसे कामुकता उबल रही है
जैसे कामुकता ही सब कुछ है।
यह कैसे हो गया?
यह दुर्घटना कैसे संभव हुई है?
पृथ्वी पर सिर्फ मनुष्य के साथ हुई है
और किसी जानवर के साथ नहीं क्यों?
एक ही कारण है सिर्फ मनुष्य ने दबाने की कोशिश की है। और जिसे दबाया,
वह जहर की तरह सब तरफ फैल गया।
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और दबाने के लिए हमें क्या करना पड़ा?
दबाने के लिए हमें निंदा करनी पड़ी दबाने के लिए हमें गाली देनी पड़ी दबाने के लिए हमें अपमानजनक भावनाएं पैदा करनी पड़ीं।
हमें कहना पड़ा कि सेक्स पाप है।
हमें कहना पड़ा कि सेक्स नरक है।
हमें कहना पड़ा कि जो सेक्स में है
वह गर्हित है निंदित है।
हमें ये सारी गालियां खोजनी पड़ीं
तभी हम दबाने में सफल हो सके।
और हमें खयाल भी नहीं कि इन निंदाओं और गालियों के कारण हमारा सारा जीवन जहर से भर गया।
नीत्शे ने एक वचन कहा है
जो बहुत अर्थपूर्ण है। उसने कहा है कि धर्मों ने जहर खिला कर सेक्स को मार डालने की कोशिश की थी।
सेक्स मरा तो नहीं सिर्फ जहरीला होकर जिंदा है। मर भी जाता तो ठीक था। वह मरा नहीं। लेकिन और गड़बड़ हो गई बात।
वह जहरीला भी हो गया और जिंदा है।
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यह जो सेक्सुअलिटी है यह जहरीला सेक्स है। सेक्स तो पशुओं में भी है काम तो पशुओं में भी है क्योंकि काम जीवन की ऊर्जा है लेकिन सेक्सुअलिटी कामुकता सिर्फ मनुष्य में है।
कामुकता पशुओं में नहीं है।
पशुओं की आंखों में देखें वहां कामुकता दिखाई नहीं पड़ेगी। आदमी की आंखों में झांकें वहां एक कामुकता का रस झलकता हुआ दिखाई पड़ेगा।
इसलिए पशु आज भी एक तरह से सुंदर है।
लेकिन दमन करने वाले पागलों की
कोई सीमा नहीं है कि वे कहां तक बढ़ जाएंगे।
साभार - योगाचार्ज हरिओम शास्त्री
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